चइत के आपन अलगे सिंगार होला. दूरि घाम के बीच सरेह में कहीं अकेल खाड़ा सेंमर के फेड़ देखबि त पाता चली. चइत में सेंमर के फेंड़ पर पतई संजोगे से लउकी, बाकिर ओकर टहकार लाल-लाल फूल अलगे सौंदर्य खाड़ा करेला. कबीर दास जी त एह फूलन में अध्यात्म के संदेश देखि लेले बाड़े-
कबिरा यह संसार है, जैसे सेंबल फूल.दिन दस के व्यवहार से झूठे रंग ना भूलि..का होला कि सेंमर के फूल त बाड़ा चटखार लागेला, ऊ सुनर लागेला. बाकिर जल्दिए ऊ गिरियो जाला आ फेंड़वा ठूंठ लागे लागेला.
कबीर दास एही के तोख देते कहले बाड़े कि सेंमर के फूल जइस बेवहार करे वाला लोगन आ ओह बेवहार के उमिर बहुते कम होला. एह से भरम में ना परे के चाहीं.
चइत आवेला त चइता के लहरो उठे लागेला. एह लहर के बढ़ावे में बर के झुरमुट नियर फेंड़ में कहीं लुका के बइठल कोइलरि के बोली अलगे हूक पैदा करेले.
कोइलरि के बोली मधुरता के संगे तेजो होले. आताना तेज की कनिया के कोरा में सुतल पियऊ भिनुसारे ओकर आवाज सुनि के उठि जाले. भोर में पियऊ के उठि के खटिया से उतरल कनिया के पसन ना आवेला. उनुकर खीसि अइसनि बढ़ि जाले कि ऊ कोइलरि के खोंते उजारे के सोचे लागेली,
सुतल पियवा के जगवलु ए रामा कोइलरि तोर बोलिया,
होत भिनसारे तोरा खोंतवा में अगिया लगइबो ए रामा,
कोइलरि तोरि बोलिया..
ई दरद त ओह कनिया के बा, जेकर पिया कम से कम गांवे-घरे बा, बाकिर ओकरा दुख के सोचीं, जेकरा सइयां पेट खातिर परदेस बा. अइसन में चइत के महीना आ कोइलरि के बोली, तनि देखीं एह दरद के,
आधि-आधि रतिया ए रामा
बोलेले कोयलिया ए रामा
पियवा बिना सून बा सेजरिया ए रामा
आधि-आधि रतिया ए रामा.
चइत के महीना मादक गंध से भरल रहेला. एही महीना में महुआ के फूल चुएला..महुआ के बीनल भी ना सिर्फ काम होला, बाकिर सौदर्य के प्रतीक भी होला..महुआ के बिनाई भी जरूरी बा, बाकिर पिया बाड़े परदेस त, नवेली के सौंदर्य पर देवर निगाह गड़इले बा…
चइत महीना में जेकर पिया परदेस बाड़े, ओकर दरद समझल आसान नइखे..एगो नवेली के दर्द देखीं..
पिया परदेसिया
देवरा घरे लइका ए रामा,
केकरा से कहीं करेजा के बतिया ए रामा
देवरू के संगवा ए रामा.
महुआ बीनन हम ना जाइबि
देवरू के संगवा.
एगो हाथो महुआ बीने,
दूजे हाथे पकड़े कलइया ए रामा..
भोजपुरी समाज आपन स्वाभिमानी सुभाव आ केहू के आगे हाथ ना पसारे के अलावा बाढ़ि-सुखाड़ के चलते हमेशा से रोजी-रोटी के परेशानी झेलत रहल हा. चइत में खेती-किसानी खातिर परदेसी लोग आपना गांव-घरे लवटि आवत रहल हा. फगुआ के पहिले आई, रंग-अबीर खेली, फेरू खेत के कटनी में हाथ बंटाई आ फेरू लवटि जात रहल हा परदेस. जेकर घर में ठीक से छान्हिं छप्पर ना रहत रहे त परदेस जाए के पहिले कनिया के नइहर पहुंचा देत रहल हा..नाया-नोचर कनिया के कइसन दरद झेले के परत रहल हा, एह चइता में देखीं,
पियवा पठावे नइहरवा ए रामा
परदेस जाए के पहिले
पियवा बनावे बिरहिनिया ए रामा.
चइते के महीना ह,जवना में भगवान राम अवतार लेले रहले. ई खाली विरह आ सौंदर्य के ही महीना ना ह, बल्कि भक्ति आ बुराई पर अच्छाई के जीत के उम्मेद के भी महीना ह. प्रकृति के सौंदर्य, ओह के मादक गंध, अन्न-धन के घरे आवे के साथ ही प्रकृति के नवसृजन के संगे ई भक्ति आ शक्ति सबके प्रतीक ह ई महीना…सायद इहे वजह भी बा कि महीनन के राजा जब आवेले त चारों तरफ उल्लास फइल जाला..आईं रऊंए एह उल्लास के आनंद लीं. (डिस्क्लेमर- लेखक उमेश चतुर्वेदी वरिष्ठ पत्रकार हैं.)
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