पीठ ने पाया कि यह अजीब बात है कि सीबीआई ने अपील दायर करने में लगभग एक वर्ष की देरी की है लेकिन अब इसे ‘बहुत महत्वपूर्ण’ मामले के रूप में पेश किया जा रहा है।
सीबीआई का बचाव करते हुए सूरी ने कहा,समस्याओं पर एजेंसी में विचार किया जा रहा था और कुछ ‘फेरबदल’ भी किए जा रहे हैं। इस पर पीठ ने कहा, यह तथाकथित बदलाव काफी समय से हो रहा है, लेकिन हमें लगता है कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा है।
पीठ ने सूरी से पूछा कि क्या 2019 में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने में 314 दिनों की देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है। यदि आपने कुछ नहीं किया है तो हमें अपील दायर करने में देरी के आधार पर याचिका को खारिज क्यों नहीं करना चाहिए? आप जब मर्जी चले आएं, हम इसकी इजाजत नहीं दे सकते।
जवाब में सूरी ने कहा, देरी के आधार पर अपील को खारिज करने के परिणामस्वरूप दो अपराधी छूट जाएंगे। उन्होंने बताया कि यह गौर किया जाना चाहिए कि ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी करार दिया था। एजेंसी इस संबंध में अदालत के किसी भी आदेश का पालन करने के लिए तैयार है।
इसके बाद पीठ ने कहा, अगर यह बात है तो पहले सीबीआई को अपील दायर करने के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों की जवाबदेही तय करने में गंभीरता दिखानी होगी।
पीठ ने कहा, वह सीबीआई की अपील पर तब विचार करेगी, जब इस संबंध में जांच हो और देरी के लिए जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय हो। पीठ ने सीबीआई को जांच के लिए दो महीने का समय दिया है और रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है।
क्या है मामला
यह मामला वर्ष 2000 में दिल्ली नगर निगम में तैनात एक जूनियर इंजीनियर सीबी सिंह और एक निजी बिल्डर राजवीर सिंह के बीच साठगांठ से जुड़ा है। बिल्डर पर बिना स्वीकृत योजना के फ्लैट का निर्माण कराया गया था। वर्ष 2016 में ट्रायल कोर्ट ने दोनों को दोषी ठहराते हुए तीन-तीन वर्ष कैद की सजा सुनाई थी लेकिन वर्ष 2019 में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए दोनों को बरी कर दिया था।