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एक प्रकार का पौधा : परम पूज्य वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के कर कमलों से बाल ब्रह्मचारी दर्पण भैया जी पटना विहार प्रांन्त वालों ने जैनेश्वरी दिगम्बरी मुनि दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के बाद मुनि श्री ब्रह्मदत्त सागर नाम करन किया। दीक्षा के पूर्व केश लौंच आचार्य श्री ने किया। हल्दी तेल और उवटन किया गया। स्नान के उपरांत 2 ajashahi पोषाक धारण करके हाथी पर सवार हो दीक्षा स्थल पहुंचे। वह गणधर बाल विधान किया।
इनको यह सौभाग्य मिला
विधान करने के लिए सौधर्म इन्द्र बनने का सौभाग्य मलैया ट्रेलर वालों को प्राप्त हुआ। दीक्षार्थी दर्पण भैया के धर्म के माता पिता बनने का सौभाग्य संतोष कुमार फिरोजाबाद वालों को प्राप्त हुआ। 21 श्रावकों ने आचार्य श्री को शास्त्र भेंट दीदीक्षार्थी को मयूर पंख से बने नव पिच्छी प्रदान करने का सौभाग्य रतलाई से पधारे डाक्टर साहव के परिवार वालों को प्राप्त हुआ। कमंडल प्रदान करने का सौभाग्य दीक्षार्थी के छोटे भाई रत्नेश जैन भाई गौरव जैन को प्राप्त हुआ। दीक्षार्थी की बहिन छाया सौरभ जैन इन्दौर वालों को कौशलौंच छेलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
देश भर से आया भक्त बने साक्षी
अजमेर, दिल्ली, इन्दौर, भोपाल, सागर, जबलपुर, छतरपुर, बंडा, रतलाई, टीकमगढ़, झालवाड़ा, अयुदतपुर, बरहन, आगरा, मैनपुरी, मेरठ, भिंड, मुरैना, पटना बिहार, हिम्मत नगर गुजरात, कटनी, मुंबई, जयपुर, शहडोल , मोबाइल नरसिंहपुर इत्यादि कई स्थानों से हजारों की संख्या में भक्त पधारें। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री शिवदत्त सागर रिटर्चार्य आशीष अभिषेक जैन ने किया।
इस अवसर पर आचार्य श्री विद्यासागर जी, आचार्य श्री अभिनंदन सागर जी आचार्य श्री विपुल सागर जी महाराज की तस्वीर का चित्र अनावरण करने का सौभाग्य सभी पवित्र वृत्ति ब्रह्मचारियों को प्राप्त हुआ। दीप प्रज्वलन करने का सौभाग्य ब्रह्मचारी तिथियों को प्राप्त हुआ। इस आयोजन में अर्थिका सत्यवती और सकल मति माताजी ससंघ उपस्थित और मंगल प्रवचन भी दिया। आचार्य श्री ने दीक्षा के पूर्व दीक्षार्थी के परिजनों रिश्तेदारों उपस्थित जनसमुदाय और संघस्थ साधुओ से दीक्षा देने की अनुमति मांगी सब ने सहर्ष अनुमति दी। उसके बाद दीक्षा विधि प्रारंभ की गई।
वैराग जीवन की सबसे बड़ी घटना
दीक्षा के संबंध में आचार्य श्री ने कहा राग से परस्पर की ओर जाना दीक्षा है। असंयम को छोड़कर संयम धारण दीक्षा है। दिगंबरी दीक्षा लेना बच्चों का खेल नहीं। संसार शरीर से विरक्ति होने पर दीक्षा लेने के भाव होते हैं। गुरु के सामने शिष्य काप्रिंटन भाव होना दीक्षा है। बैराग्य जीवन की सबसे बड़ी घटना है।
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